सिविल इंजीनियर और कंस्ट्रक्शन स्टाफ की सैलरी


पूरे विश्व मे कोरोना का बहुत बड़ा खतरा आया हुआ हैं। बहुत लोग अभी भी घर मे बैठे हुए हैं। कई देशों में अभी भी लोकडाउन चालू है। जल्दी दवा आने के कोई भी उपलब्धि नही है। सब देश मे हाहाकार मचा हुआ हैं। ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था को आधार देने के लिए एवं पूर्ववत करने के लिए सरकार ने अनलॉक करना शुरू किया। और सभी प्रकार के व्यवहार करने के लिए नियम का पालन करके शुरू करने की मान्यता दे दी। धीरे धीरे सभी व्यवहार शुरू होने लगे हैं। अभी लगभग सभी संस्थाएं शुरू हुई हैं।

लगभग मई महीने अंत मे और जून महीने के पूर्वार्ध में बहुत कंस्ट्रक्शन कंपनी का काम शुरू हुआ। उस समय इतना कुछ नही लग रहा था। पहले लेबर की संख्या कम थी वो बढ़ने का अंदाजा था, लेकिन जैसे जैसे लेबर कि संख्या कम होती गयी वैसे गंभीर परिस्थितियों का अंदाजा आने लगा। और जिस लेबर रेट में काम कर रहे हैं उनके रेट भी बढ़ गए। तो सबकी चिंता बढ़ गई। अब धीरे धीरे संकट सामने दिखने लगा।

जब बुक किये फ्लैट का हैंडओवर देने का समय नजदीक आने लगा वैसे सबकी टेंशन बढ़ने लगी। सभी बिल्डर, सभी डेवलपर, सभी कॉन्ट्रेक्टर लेबर को रेत बढ़के काम शुरू करने का शिलशिला शुरू करने लगे। क्योंकि ऊपर से रेरा का टाइम लाइन बहिन खतम होने लगा। हलाखी रेरा ने बहुत बिल्डरों को टाइम बढाके देने का फैसला किया हैं। फिरभी सबका टेंशन बढ़ने लगा हैं।

दूसरी तरफ बहुत सारे स्किम के बचे हुए फ्लैट जल्दी बिकने कि कोई संभावना नही दिख रही हैं। बिल्डर और डेवलपर की इनकम कम हुई है। बहुत कॉन्ट्रेक्टर के बिल अटके हुए है। बिल का पैसा टाइम पे मिलने की आशंका बहुत कम हैं। बहुत सारे प्रोजेक्ट बंद हो गए। कई कॉन्ट्रेक्टर लेबर न होने की वजह से कम बंद करके बैठे हैं।




तो इस मुश्किल घड़ी में कौन सबसे ज्यादा प्रभावित होनेवाला हैं?

सिविल इंजीनयर

हाँ, यह एक बहुत बड़ी सच्चाई है। अभी सबसे मुश्किल समय मे सिविल इंजीनयर ही हैं। बाकी सब अपने अपने काम मे व्यस्त हैं। अभी हम लगभग सभी सिविल इंजीनियर के परिस्थितियों का खुलासा करनेवाले हैं।

1. नए रोजगार का निर्माण बंद हुआ।

सब बिल्डर, डेवलपर और कॉन्ट्रेक्टर कोरोना की वजह से बहुत प्रभावित हुए हैं। इसलिये नए प्रोजेक्ट शुरू होने की आशंका नही हैं। नए प्रोजेक्ट शुरू न होने की वजह से नए रोजगार निर्माण नही हो रहे हैं। हर एक बिल्डर एवं डेवलपर अपने पुराने स्टाफ से एडजस्ट कर रहा हैं।

2. नई नोकरी मिलना या बदलना हुआ मुश्किल।

सब काम धीरे धीरे शुए हैं। कोरोना मरीजो की संख्या बढ़ने की वजह से फिर एकबार लॉक डाउन होनी की संभावना दिख रही है। इसलिये नए काम शुरू होने में अभी थोड़ा समय लगने वाला है। तो नए जॉब मिलने की या बदलने की संभावना बहुत कम हैं।

3. पगार / सैलरी नही हो रही।

सभी बिल्डरों एवं डेवलपर और कॉन्ट्रेक्टर को कम जल्दी पूरा होना चाहिए। लेकिन वो करते समय जो स्टाफ साइट पे काम कर रहे हैं, उनकी सैलरी समय पर नही हो रही हैं। कुछ कंपनियों में सैलरी दे नही रहे हैं। जिनमे बहुत बड़े और अच्छी कंपनियों का नाम शामिल हैं।

4. सैलेरी समय पर नही हो रही हैं।

बहुत सारे इंजीनियर बाहर गांव से नोकरी की तलाश में शहर में आते हैं। अभी कई इंजीनियर और सुपरवाइजर शहर में अपना घर बसा चुके हैं। उनके बच्चे शहर में पढ़ाई करने लगे हैं। कोरोना की वजह से सब तरफ परिस्थिति खराब हुई हैं। तो बिल्डर, डेवलपर एवं कॉन्ट्रेक्टर इसी परिस्थिति से गुजर रहे हैं। कुछ बिल्डर एवं डेवलपर और कॉन्ट्रेक्टर अपने स्टाफ की सैलरी टाइम पे कर रहे हैं। लेकिन कुछ लोग इस नाज़ुक परिस्थिति का गलत फायदा उठा रहे हैं। और जान बुझ के अपने स्टाफ की सैलरी टाइम पे नही कर रहे हैं। क्योंकि उनको पता हैं कि ऐसे भी स्टाफ कम करना हैं, तो अगर हम सैलेरी नही देंगे तो ये लोग अपने आप छोड़कर निकल जाएंगे।

5. सैलरी में कटौती।

बहुत सारी रियल एस्टेट कंपनीयो ने यह एक सूझीबुझी साजिस की हैं। की कोरोना की वजह से कंपनी प्रभावित हुई हैं। तो सबको 60%-70% सैलेरी मिलेगी। और कई कंपनियां मार्च महीने से ऐसे ही 60%-70% ही सैलेरी दे रहे हैं। मार्च, अप्रैल और जून इन 3 महीनों में 70% सैलेरी देना उचित था, लेकिन अब पूरी सैलेरी देने में कोई दिक्कत नही हैं। लेकिन कई बिल्डरों की विचारधारा ऐसे है कि यही सैलरी इस साल के अंत तक देंगे। बचा हुआ 30% का कोई भी बात नही कर रहा हैं। जो बात करेगा उसको निकल दिया जाएगा।






लेकिन सभी इंजीनियर का परिवार होता हैं और उस इंजीनियर का परिवार की जिम्मेदारी उस अकेले के कंधो पे होती हैं, बच्चे की स्कूल फि, घर ईएमआई, घर के खर्चे, राशन, दवाखाना, आदि, लेकिन सैलेरी न होने की वजह से सबको बैंकसे घर का लोन चुकाने के लिए तंग कर रहे हैं। स्कूलों से फीस भरने के लिए तंग कर रहे हैं। और जिसके परिवार में कोई अन्य बीमारी से पीड़ित हैं तो उसके महीने के दवाई का खर्चा अलग हैं। इसलिए बहुत सारे इंजीनियर डिप्रेशन के शिकार हुए हैं।

कई इंजीनियर की 6 माह तक का सैलेरी नही दि हैं। अब ओ जॉब बदल भी नही सकता और घर भी नही चला सकता।

जब कंपनी को सैलरी के बारेमे पूछेंगे ओ इंजीनियर को सब मैनेजमेंट निकालने के पीछे पड़ जाते हैं। इसलिए कोई भी सामने आकर अपने सैलेरी के बारे में बात नही करता हैं।

कई नामंकित कंपनियों में बहुत अजीब किस्म का खेल चल रहा हैं। 6 माह तक सैलेरी देते नही, और मांगने गए तो सेटलमेंट की बाते करते हैं।



जैसे कि अगर किसी इंजीनियर की सैलरी 25,000 प्रतिमाह हैं तो 6 महीने में उसको 1,50,000 देने चाहिए। लेकिन कुछ बड़ी कंपनियों में जो सैलरी मांगनेवाला स्टाफ हैं उसको 50% या 60% सैलेरी लेने पे मजबूर करते हैं। मतलब 1,50,000 देने की जगह सिर्फ 70,000-75,000 देने को राज़ी हैं। मतलब 25,000 की जगह 12,000 से 12,500 सैलेरी दे रहे हैं। जो कानूनी तौर पर सही नही हैं। और उसके साथ साथ उस स्टाफ से 60%-70% सैलरी लेने को राज़ी हुआ है ऐसा प्रमाणपत्र लिखके लेते हैं। और ऐसा काम नामंकित कंपनियों में शुरू हैं।

यह एक बहुत गंदा खेल हैं, यह कंपनिया इंजीनियर लोगोके मजबूरी का बहुत फायदा ले रहे हैं। कई इंजीनियर भूखे मर रहे, अपने परिवार को गांव भेजना पड़ रहा है।

एक प्रोजेक्ट में सभी स्टाफ की सैलरी प्रोजेक्ट के पूरे खर्चे में सिर्फ 6-7% में ही होती हैं। लेकिन कई बिल्डरों एवं डेवलपर को गलतफेमी हुई हैं कि स्टाफ के सैलेरी में ही ज्यादा खर्चे होते हैं। स्टाफ की सैलरी के कई गुना ज्यादा ब्याज बैंक को देते हैं लेकिन स्टाफ को प्रोत्साहन देके समय पर सैलरी देके अपना प्रोजेक्ट समय पर पूरा नही करना चाहते हैं।

कॉन्ट्रेक्टर का बिल थोड़ा रुकके रखा तो वो तुरंत काम बंद कर देता हैं। लेकिन इंजीनियर का ऐसा नही हैं। इंजीनियर काम बंद करेगा तो उसको दूसरे दिन काम से निकाल दिया जाएगा। चाहे उसका परिवार भूखा मरे। चाहे वो और उसका परिवार रास्ते पे आये, कुछ फर्क नही पडता।

बाकी सभी क्षेत्रों में भी कोरोना का प्रभाव पड़ा हैं। लेकिन बाकी क्षेत्रों में वर्क फ्रॉम होम कर सकते हैं। कंस्ट्रक्शन में ऐसा नही कर सकते। यह सब काम उसी जगह पे जाके चेक करना पड़ता हैं। इसलिए सिविल इंजीनियरिंग को हर रोज साइट पे जाना पड़ता हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर, मैकेनिकल इंजीनियर, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर, यह सभी लोग वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं। और सब की सैलरी समय पर हो रही हैं। लेकिन सिविल इंजीनियर को हररोज साइट पे जाकर भी समय पर सैलरी नही मिल रही है।

अगर कोई इंजीनियर कोई कंपनी के खिलाफ लेबर कोर्ट में गया, या कोई लीगल एक्शन लेने की कोशिश की तो उसको पहले कंपनी से निकाल देते हैं, फिर भी सेटलमेंट नही हुई तो गुंडागर्दी की जाती हैं और उससे भी कोई इंजीनियर डरा नही तो केस चलने देते हैं। और सबको पता हैं। अपने कोर्ट कितने फ़ास्ट हैं। जब उसका रिजल्ट आएगा तब तक वो स्टाफ मर गया होगा, या बूढा बो गया होगा। और कोर्ट केस, लेबर कोर्ट मैटर यह बिल्डर और डेवलपर को आम बातें हैं। लेकिन एक मिडल क्लास इंजीनियर या स्टाफ यह सब नही कर पाता, एक तो आर्थिक रूप से ठीक नही रहता, और 50,000 -60,000 रुपयों के लिए अपनी और अपने परिवार की जिंदगी दांव पे लगाना नही चाहता हैं। और ठीक इसी बात का फायदा कुछ बिल्डर लोग लेते हैं।

इस सैलेरी टाइम पे न करने के कारस्थान में ऑफिस में एसी की हवा खाते बैठनेवाले बड़े अकाउंटेंट या मुन्सी का ज्यादा हाथ रहता हैं। बहुत सारे प्रायवेट कंपनीके मुन्सी कॉन्ट्रेक्टर और सप्लायर के बिल का पैसे टाइम पे देने के लिए उनसे कमीशन लेते हैं। इसलिए मुन्सी के कुछ खास कॉन्ट्रेक्टर और सप्लायर के बिल समय पर निकलके उनका पेमेंट कर दिया जाता हैं। लेकिन डायरेक्टर के सामने खुद को ऊंचा दिखाने के लिए, खुद का काम दिखाने के लिए स्टाफ का पेमेंट का जान बूझ के नाटक किया जाता हैं। मुन्सी को सब तरफ से कमीशन मिलता हैं इसलिए उसको पगार की जरूरत नही होती हैं। ओ खुद का कंपनी के प्रति कितना लगाव हैं यह दिखाने के लिए स्टाफ की सैलरी टाइम पे नही करता और बचत किया हुआ दिखता हैं। फिर चालू होता हैं सेटलमेंट का खेल, और इसमें मरता हैं बस और बस सिविल इंजीनियर और सुपरवाइजर।

यह बड़े अकाउंटेंट या मुन्सी ज्यादातर बिल्डर या डेवलपर के करीबी होते हैं। जो हर बार यह अपने साहब को यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि स्टाफ की सैलरी टाइम पे करने से ज्यादा और दूसरे काम कितने महत्वपूर्ण पूर्ण हैं। तो वो अपने साहब को मना के अपने कमिशन मिलनेवाले सप्लायर और कॉन्ट्रेक्टर का बिल निकालकर पैसा निकालने की कोशिश में लगा रहता हैं।

लेकिन उनको यह जानने की थोड़ीसी भी कोशिश नही करते हैं कि अपने स्टाफ का पूरा परिवार उसके ऊपर या उसके पगार के ऊपर निर्भर हैं। पगार समय पर नही मिला तो वो भूखे मार जायेंगे। यह बहुत दुःखद बात हैं। न जाने बिल्डर या डेवलपर को यह बात समझ मे आती या नही?




पूरे भारतभर में ऐसी बहुत घटनायें हो रही हैं। बहुत सारे इंजीनियर डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। कई लोंगो के जॉब चले गए हैं। कई लोग सेटलमेंट करके चुप बैठे हैं। कई लोंगो का भारी नुकसान हुआ हैं।

अगर ऐसा ही चलता रहेगा और हम एक साथ खड़े नही हुए तो हम सब इंजीनियर के परिवार रास्ते पर आएंगे यह ध्यान में रखो।


बाकी आप समझदार हैं।