चेन्नई सूरत ग्रीनफील्ड हाइवे रोड बनाने का माननीय रोड मिनिस्टर ने अनाउसमेंट किया। यह हाइवे लगभग 1270 किमी लंबा हैं।
और यह गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगना, तमिलनाडु इस राज्यों से जायेगा, उसके साथ साथ सूरत, नाशिक, अहमदनगर, सोलापुर, अक्कलकोट, कलबुर्गी, कुरनूल, कडप्पा, तिरुपति जैसे शहरों को जोडने का के करेगा।
इस रोड की कुल लागत 45,000 करोड़ रुपये के आसपास होगी।
इस रोड को कुछ जगह 6 लेन होगी और कुछ जगह 4 लेन होगी। इसलिये इसका स्पीड समृद्धि महामार्ग की तरह 120 किमी प्रति घंटा के लिए मान्य होगा।
यह रोड लगभग 2025 के अंत मे पर होगा।
यह रोड महाराष्ट्र राज्य से लगभग 300किमी जाएगा।

अब इस रोड के लिए जमीन का अधिग्रहण का काम चालू है।
इसलिए नेशनल हाइवे ऑथोरिटी ऑफ इंडिया ने कई सर्कुलर जारी किए हैं।

शुरू में इस रोड का सर्वे करने के लिए सभी किसानों ने सहकार्य किया। रोड का मार्किंग कर दिया गया, सभी जगह सीमेंट के खम्बे लगाए गए। उसको काला और पिला पेंट दिया गया।
कुछ किसान खुश थे, और कुछ नाखुश थे।
जिनकी पूरी जमीन में से ये रोड जा रहा था वो परिवार नाखुश लग रहा था, और जो किसानों के पास थोड़ी ज्यादा जमीन थी उस वजह से वो थोड़े खुश थे, क्योंकि अपने पुरखों की जमीन देने की इच्छा किसीको नही होगी। लेकिन सबका विकास होने वाला हैं यह सोचके सब राजी हो तो गए।
और बाकी महामार्ग जैसे समृद्धि महामार्ग तथा अन्य महामार्ग की तरह मिलेवाला लाभ लगभग जमीन के बजारभाव के मूल्य के 5 गुना लेने के लिए तैयार हो गए।
लेकिन यही से सब शुरू हो गया हैं। 
जैसे ही मिनिस्ट्री को पता चला कि सब  जमीन देने को राजी है। और जमीन अधिग्रहण को ज्यादा पैसा जा रहा हैं। नेशनल ऑथोरिटी ऑफ इंडिया ने रातोरात 2013 का जमीन अधिग्रहण का कानुन रद्द करके, नया 2021 में और 2022 में  एक अधिसूचना बनाके खारिज करने की कौशिक की और यह नए अधिसूचना के अनुसार किसानों को जमीन का मूल्यांकन बाज़ार मूल्य के बराबर ही मिलनेवाला था।

यह सरकारी अधिकारियों को अपने से बड़े अफसरों को खुश करने के लिये बहुत अच्छा मौका मिल गया था।
इसमे हर एक जिले की बड़े बड़े अफसर शामिल हुए हैं।

लेकिन जैसे ही किसानों को पता चला कि उनको एक एकर के बदले में सिर्फ 5,00,000 रुपये मीलने वाले हैं। वहीं से अब एक बड़े संघर्ष की शुरुवात हुई हैं।
कुछ किसानों को 1000 वर्ग फुट जमीन को सिर्फ 23000 रुपये मिलेवाले हैं ऐसा नोटिस भेजने का काम इन अफसरों ने किया हैं।

अब यह सब किसान सरकार और भृष्ट अधिकारियों के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर रहे हैं।
इन सबका कहना है कि एक एक सरकारी अधिकारी का महीने का पगार लगभग 5,00,000 तक होगा लेकिन इनको किसानों की जमीन लेके उसका उपजीविका का साधन ले लेकर, अच्छा लाभ देने के बजाय सब किसानों का परिवार बर्बाद कर रहे हैं और उनको रास्ते पर ला रहे हैं।

इस मामलें अबतक नॅशनल हाइवे ऑथोरिटी ऑफ इंडिया चुप हैं और रोड मिनिस्टर भी चुप हैं।

लेकिन कुछ डेवलोपमेन्ट करने के लिए इतने परिवारों को जान बुज के बर्बाद करना अच्छी बात हैं क्या?

अगर सरकार के पास पैसे नही और किसानों की जमीन का अच्छे मूल्य देखे जमीन अधिग्रहण करने के पैसे नही है तो ये सब सरकार यह जबदस्ती क्यों कर रहा हैं। और सब किसानों के परिवारों को क्यों बर्बाद कर रहे हो।

देखिये कितनी सीधी बात हैं कि जितने भी किसान जमीन देने को राजी हैं उनको सरकार ने जबरदस्ती 5 लाख रूप्यव प्रति एकड़ के दाम देने के लिए पत्र भेज दिए गए, 
अब यह एक समझनेवाली बात हैं कि, भारत सरकार के रास्ते विभाग ने बताया कि भारत सरकार ने हर एक जगह के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर को जमीन ले मोल भाव करने के अधिकार दिए गए हैं। लेकिन बहुत सारे जगह पे कलेक्टर अपना खुद का नाम करने के लिए लाखों किसान परिवार बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। और जन बूझकर किसानों को बर्बाद कर रहे हैं।

देखिये डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर जैसा इतना बड़ा आदमी, इतने बड़े पद पर काम करने वाला इंसान जिसके पास एक ज़िला कण्ट्रोल करने का अधिकार रहता हैं वो इतना बड़ा डिसिजन अकेला तो नही लेगा ना?

यह एक बहुत बड़ा षडयंत्र हैं। 

तो को हैं जिसमे शामिल?
ये षडयंत्र क्या हैं?
किसने किया?
क्यों किया?
इससे किस किस को फायदा होगा?

जानते है अगले पोस्ट में.......

धन्यवाद